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Showing posts from January, 2021

कविता: मुहोब्बत

. मुहोब्बत उसने पूछा- मुहोब्बत क्या है मैंने कहा 'आग  और दिल? 'चूल्हा है वो मुस्कराई और बोली- तो क्या पकाते हो इस पर? 'रिश्ते और जज्बात' ये चूल्हा जलता कैसे है? 'बातो से मुलाकातों से' उसने शरारती लहजे में पूछा- अच्छा तो मैं क्या हूं? मैंने कहा- "तुम, रोशनी हो और तपिश भी" वो मुस्कराई और शांत हो गई। उसने नहीं पूछा धुआं क्या है? वो अब भी नहीं जानती, मुहोब्बात क्या है । 🖊️ अर्पित सचान

कविता: नारी

.  'नारी' अब्ला नहीं तू शक्ति है पहचान खुद को मिटती तेरी हस्ती है, रचती तू इतिहास, भविष्य भी है, ईश्वर की अनसुलझी पहेली है तू,  अम्बर सा विशाल आंचल है तेरा,  धरती सी सहनशील है तू, तपती धूप में ठंडी हवा का छोका है, सर्द मौसम में भीनी सी गर्माहट का एहसास है तू, अब्ला नहीं तू शक्ति है पहचान खुद को मिटती तेरी हस्ती है, तेरे अन्दर श्रजन की शक्ति, तेरे अन्दर ही पतन है, दुर्गा, काली तुझमें है समाई, समय-समय पर तुझमे दी है दिखाई, हर मुश्किल में इनकी ही शक्ति काम तेरे है आई, अब्ला नहीं तू शक्ति है पहचान खुद को मिटती तेरी हस्ती है, बसती तुझमें ब्रम्हांड की शक्ति है, जिसका न कोई आदि न अंत है, आकार में बंधी निराकार शक्ति है तू, आजाद कर खुद को दुनिया के झूठे बंधनों से, पंख फैला भर ऊंची उड़ान तू, अब तो पहचान खुद को मिटती तेरी हस्ती क्यूं??? - प्रीती सचान (प्रकृति)