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Showing posts from April, 2022

कविता : फिसल रही जिंदगी

. '' फिसल रही जिंदगी '' हाथ थामे चल रही जिंदगी, कदम दर कदम ढल रही जिंदगी । गजब का है ये सिलसिला, कश्मकश में जल रही जिंदगी । कुछ यादें छोड़ आई अतीत में, उलझनों में पल रही जिंदगी । इसे समझ नही पाया अब तलक, हर वक्त छल रही जिंदगी । साथ चलता है मुसीबतों का काफिला, न जाने क्यों खल रही जिंदगी । खामोश आज ईमान की आरजू, वो हाथ मल रही जिंदगी । मुठ्ठी से रेत की तरह, अब फिसल रही जिंदगी ।                                                       - अर्पित सचान

कविता : मुस्कान

. 'मुस्कान' आ लिख दूं कुछ तेरे बारे में..........! मुझे पता है कि तू रोज ढूंढती हैं, मुझे खुद के अल्फाजों में....! मैं जब मिलती हूं तुझसे, तेरे चेहरे की रौनक बड़ जाती है आंखों में शर्म के साथ, होठो पे नज़र आती हूं मैं दिल में खुशी का एहसास, तेरा और मेरा साथ काफी है किसी की उम्र को, थोड़ा लम्बा करने के लिए । - प्रीती सचान  

कविता : आज फिर से

. आज फिर से..... एक जिंदगी खो दी आंखों के सामने  आज फिर से..... मौत को इतने करीब से देखा सामने आज फिर से..... जिंदगी को हारते देखा आज फिर से..... अपने को हमेशा के लिए दूर होते देखा आज फिर से..... अपने को खो दिया !!!                                         -अर्पित सचान