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Showing posts from November, 2021

कविता : मेरी याद

. "मेरी याद" वो जो मेरी यादों में बसी है। ऐसा लगता है यही कहीं है।। दिखाई तो पड़ती है अक्सर मुझे। मगर लगता है ख्वाब तो नही है।। फिजाओं मे उसकी महक सी है। उसकी खुशबू हवाओं में घुली है।। पता नहीं कहीं गायब सी है ।।                                             - अर्पित सचान

कविता : 'कोई तो रंग भरी जीवन में'

. "कोई तो रंग भरी जीवन में" जीवन एक कला है, बिना रंग के, जीवन फीका सा है बिना रंग के, सूना सूना सा है कुछ, कुछ अनसुलझा सा है, बिना रंग के, डरा-डरा सा है कुछ, कुछ इच्छाओ से है भरा हुआ, कोई तो रंग भरो जीवन में ।                                        - अर्पित सचान 

Poem : Good Morning

. 'Good Morning' Every goodmorning brings, A new beginning, A new one, And a lot. We can start a new, Forgetting the past, To a new future, To make with the good. Good morning says, Stand up, And make a fresh start, See you the next morning, You will be one step ahead.                              - Arpit Sachan

मेरे M.Sc के वो दिन

  मेरे प्यारे दोस्तों ,   मैं लगभग दो साल पहले (जुलाई 2019) को आया था मैं अकेला था, अनजाना था, शायद सभी  की यही दशा थी सभी ने मुझे अपनी जिंदगी में एक जगह दी और शायद मुझे कभी न भूलने वाली दोस्ती का एहसास कराया । मुझे इस सफर में आने वाली हरएक कठनाईयों को खुद से जोड़ा और मिल कर उन्हे समाप्त कराया । रिश्ते इतने गहरे हो गए कि जब मैं आखरी पेपर दे रहा था तो बड़ा ही भावुक था मन में बहुत से सवालात थे दुविधा थी घबरा रहा था और सोच रहा था मैं फिर अकेला हो गया शायद ही अब वो दिन आयेगे जब आप सब इतने करीब और साथ होगे   आपकी आने वाली परीक्षाओं के लिए और आपके आने वाले जीवन के लिए भी बहुत-बहुत शुभकामनाएं👍🏻👍🏻🙂🙂 "मैं आपको और आपके साथ बिताए दिनों को हमेशा याद रखूंगा।" To be continue....... 🖊️

कविता : उलझे रास्ते

. "उलझे रास्ते" चौराहे पर खड़े हुए है, मंजिल का कुछ पता नही हर तरफ सड़कें ही सड़कें, छोर का कुछ पता नही ? एक राह पर सपनें है, हम सबको बड़ा लुभाते है पर अकेले चलना होगा, ये कहकर घबड़वाते है ? एक राह सीधी सी है, सब उसपर है भाग रहे  भीड़तंत्र से ही अपनी, सारी उम्मीदें साध रहे ? एक राह पर अपने हैं, अनुभव का दम्भ दिखाते हैं खींच तानकर तुमको, उस पर चलाना चाहते हैं ? एक राह बुद्धि से परे है, उस पर कोई नही चले लेकिन कहीं तो जाती है, मंजिल तक पंहुचाती है ? - अर्पित सचान