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'नारी'
अब्ला नहीं तू शक्ति है पहचान खुद को मिटती तेरी हस्ती है,
रचती तू इतिहास, भविष्य भी है,
ईश्वर की अनसुलझी पहेली है तू,
अम्बर सा विशाल आंचल है तेरा,
धरती सी सहनशील है तू,
तपती धूप में ठंडी हवा का छोका है,
सर्द मौसम में भीनी सी गर्माहट का एहसास है तू,
अब्ला नहीं तू शक्ति है पहचान खुद को मिटती तेरी हस्ती है,
तेरे अन्दर श्रजन की शक्ति, तेरे अन्दर ही पतन है,
दुर्गा, काली तुझमें है समाई,
समय-समय पर तुझमे दी है दिखाई,
हर मुश्किल में इनकी ही शक्ति काम तेरे है आई,
अब्ला नहीं तू शक्ति है पहचान खुद को मिटती तेरी हस्ती है,
बसती तुझमें ब्रम्हांड की शक्ति है,
जिसका न कोई आदि न अंत है,
आकार में बंधी निराकार शक्ति है तू,
आजाद कर खुद को दुनिया के झूठे बंधनों से,
पंख फैला भर ऊंची उड़ान तू,
अब तो पहचान खुद को मिटती तेरी हस्ती क्यूं???
- प्रीती सचान (प्रकृति)
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