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"उलझे रास्ते"
चौराहे पर खड़े हुए है, मंजिल का कुछ पता नही
हर तरफ सड़कें ही सड़कें, छोर का कुछ पता नही ?
एक राह पर सपनें है, हम सबको बड़ा लुभाते है
पर अकेले चलना होगा, ये कहकर घबड़वाते है ?
एक राह सीधी सी है, सब उसपर है भाग रहे
भीड़तंत्र से ही अपनी, सारी उम्मीदें साध रहे ?
एक राह पर अपने हैं, अनुभव का दम्भ दिखाते हैं
खींच तानकर तुमको, उस पर चलाना चाहते हैं ?
एक राह बुद्धि से परे है, उस पर कोई नही चले
लेकिन कहीं तो जाती है, मंजिल तक पंहुचाती है ?
- अर्पित सचान
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