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छोड़ दिया है

 
छोड़ दिया हमने वक्त से टकराना
बांधकर  उम्मीदे फिर बिखर जाना 
उलझे है हम, न दिखे कोइ ठिकाना
मानो परीक्षा में आया कोई प्रश्न अनजाना 
ना होना मायूस तुम ना हार अपनाना 
करते रहो कर्म, ना फल की उम्मीद लगाना 
है आशा-निराशा का ये रिश्ता पुराना 
इस कठिन डगर में बस चलते जाना 

--अर्पित सचान 

Comments

Prakhar Saxena said…
Nice

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