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Showing posts with the label Arpit Sachan

कविता: किताबे इश्क़

"किताबे इश्क़" आज लिखती हूं दस्ताने किताबे इश्क़ की नहीं इनसे पाक मोहब्बत किसी की सच्चा और नेक इश्क़ है इनका साथ देना काम है इनका किताबों का इश्क़ कभी बेवफाई नहीं करता हर मुश्कल में हाथ है थामे रखता छोड़ो इंसानी इश्क़ का फलसफा वक्त ज़रूरत काम आयेगा इश्क़ किताबों का।। - प्रीती सचान

कविता: अफसोस नहीं

" अफसोस नहीं " ऐ मेरी मोहब्बत मै तेरे दूर जाने का अफसोस नहीं करती   तू अकेली नहीं गई  तेरे साथ मेरी रूह भी गई है ज़िन्दगी की उलझनों से कभी फुरसत मिले तो बीते हुए पलों में उनको भी तलाश लेना  जिन्होंने तुमसे नहीं तुम्हारी रूह से मोहब्बत की । कब्र में तो जिस्म दफ्फन होते हैं रूह- ए- मोहब्बत तो आज़ाद होती है कभी बागो में खिले फूलों पर मंडराती तितली की तरह कभी हवाओं में घुली सोंधी खुशबू की तरह नदियों में उफनाते जल की तरह सूरज की सुनहरी धूप की तरह जिसे महसूस किया जा सकता है,पाया नहीं जीवन में कभी अकेलापन लगे तो खुद को कभी अकेला मत समझना जब मेरी रूह जिस्म से आज़ाद हो उस वक्त भी तुम्हारे साथ होगी इसलिए मै तेरे दूर जाने का अफसोस नहीं करती।। -  प्रीती सचान

कविता: सीख लिया हमने

✒️ "सीख लिया हमने" अब संभलना सीख लिया है हमने, गिर कर उठना सीख लिया है हमने, बचपन में चलना सिखाया था मा बाप ने, आज खुद से चलना सीख लिया है हमने, आज खुद संभलकर लोगो को,  संभालना सीख लिया है हमने, अब किसी  सहारे के बिना भी, चलना सीख लिया है हमने, रोते को हसाना सीख लिया है हमने, छोटे पंखों के परिंदो को भी,  उड़ना सिखा दिया है हमने, अब गिर कर संभलना सीख लिया है हमने ।   - प्रीती सचान   

कविता: मुसाफिर

. "मुसाफिर" जिंदगी एक खोज रही मै मुसाफिर ही रही इस घर से उस घर तक चली नाम को तरसती रही निगाहें मुझ पर ही टिकी मेरे लिए ना घड़ी बनी मै मुसाफिर ही रही आहट मेरी पहचाने न कोई आरज़ू फर्ज ने है कुचली अब बगावत पर हूं अडी रूह भी है सहम रही  मै मुसाफिर ही रही ।                       -   अर्पित सचान                

कविता: मेरी परछाई

. मेरी परछाई आज पूछ ही लिया परछाई से, क्यूं देती हो तुम साथ मेरा  थोड़ा रुक कर बोली, तुझे ना हो कभी अकेलेपन का अहसास कैसे तुझको छोङू अकेला,  जब मै और तुम एक ही है  काया भले ही हो अलग - अलग पर वजूद तो एक ही है, जब दुनिया छोड़ती है तेरा साथ,  तब भी मै होती हूं तेरे साथ जब अपने ही करते है खाक, तब भी मै होती हूं तेरे साथ तू अपने मन की बात कहे ना कहे मुझे सब देती है सुनाई, तेरी हंसी, तेरा दुख, तेरा दर्द सब देता है मुझे दिखाई, तेरे उत्थान से पतन तक, बस मै ही तो होती हूं तेरे साथ  क्योंकि मै हूं तेरी परछाई, कैसे छोड़ दू तेरा साथ ।। -- प्रीती सचान (Teacher)

तस्वीर में श्री राम छोटे और मोदी बड़े क्यों??

  जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिन तैसी। कुछ लोगों को इस तस्वीर पर आपत्ति है।  विरोधी मानते हैं कि तस्वीर में श्रीराम से बड़ा मोदी को दिखाया गया। अब सोच की कोई सीमा नहीं है, देखने का अपना अपना दृष्टिकोण है । जैसा दृष्टिकोण होगा सम्भवतः दिखाई भी वैसा ही पड़ेगा। तो दृष्टिकोण की कश्मकश में विरोध करने वाले विरोधियों से मुझे कुछ कहना नहीं है। लेकिन विरोध से पहले इस तस्वीर के तमाम पहलू पर गौर फरमा लिया जाए  पहली बात, हम अपने घर में बाल-गोपाल की पूजा करते हैं। मेरे घर के मंदिर में भी नन्हें बाल गोविंदा विराजमान है। इसका मतलब ये नही हुआ कि घर मे रहने वाले लोग उन से बड़े हो गए। जन्माष्टमी में मक्खन-मिश्री खिलाते हैं। वो बाल-गोपाल कितने बड़े होते हैं? ईश्वर एक शक्ति है,,आराधना है,, तपस्या है,, प्रेम है,, समर्पण है,, भावना है,, सकारात्मकता है,, खुद से खुद को आत्मसात करने का जरिया है। छल, कपटता, घृणा, ईर्ष्या, तो बिल्कुल नही। वहीं श्रीराम के परमभक्त हनुमान ने दिव्य रूप धारण किए थे। अगर आपने रामायण देखी या पढ़ी होगी तो शायद आपको पता भी होगा उसमें बहुत अच्छे से बताया गया ...

|| कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती ||

✒  लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती । कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती ॥ नन्ही चींटी जब दाना लेकर चलती है । चढ़ती दीवारों पर सौ बार फिसलती है ॥ मन का साहस रगों में हिम्मत भरता है । चढ़ कर गिरना, गिर कर चढ़ना न अखरता है ॥ मेहनत उसकी बेकार हर बार नहीं होती । कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती ॥ डुबकियां सिन्धु में गोताखोर लगाता है । जा जा कर खाली हाथ लौट कर आता है ॥ मिलते न सहज ही मोती गहरे पानी में । बढ़ता दूना विश्वास इसी हैरानी में ॥ मुट्ठी उसकी खाली हर बार नहीं होती । कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती ॥ असफलता एक चुनौती है, स्वीकार करो । क्या कमी रह गयी, देखो और सुधार करो ॥ जब तक न सफल हो, नींद – चैन को त्यागो तुम । संघर्षों का मैदान छोड़ मत भागो तुम ॥ कुछ किये बिना ही जयजयकार नहीं होती । कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती ॥ -- ✒ हरिवंश राय बच्चन    Follow on facebook Subscribe for more updates <script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js">...

मधुशाला

मृदु भावों के अंगूरों की आज बना लाया हाला, प्रियतम, अपने ही हाथों से आज पिलाऊँगा प्याला, पहले भोग लगा लूँ तेरा फिर प्रसाद जग पाएगा, सबसे पहले तेरा स्वागत करती मेरी मधुशाला।।१।  प्यास तुझे तो, विश्व तपाकर पूर्ण निकालूँगा हाला, एक पाँव से साकी बनकर नाचूँगा लेकर प्याला, जीवन की मधुता तो तेरे ऊपर कब का वार चुका, आज निछावर कर दूँगा मैं तुझ पर जग की मधुशाला।।२। प्रियतम, तू मेरी हाला है, मैं तेरा प्यासा प्याला, अपने को मुझमें भरकर तू बनता है पीनेवाला, मैं तुझको छक छलका करता, मस्त मुझे पी तू होता, एक दूसरे की हम दोनों आज परस्पर मधुशाला।।३। भावुकता अंगूर लता से खींच कल्पना की हाला, कवि साकी बनकर आया है भरकर कविता का प्याला, कभी न कण-भर खाली होगा लाख पिएँ, दो लाख पिएँ! पाठकगण हैं पीनेवाले, पुस्तक मेरी मधुशाला।।४। मधुर भावनाओं की सुमधुर नित्य बनाता हूँ हाला, भरता हूँ इस मधु से अपने अंतर का प्यासा प्याला, उठा कल्पना के हाथों से स्वयं उसे पी जाता हूँ, अपने ही में हूँ मैं साकी, पीनेवाला, मधुशाला।।५। मदिरालय जाने को घर से चलता है पीनेवला, 'किस पथ से जाऊँ?' असमंजस में है वह भोलाभाला, अलग-अल...

हमारी जिंदगी ||

✒  हमारी जिंदगी   ऊपर वाले ने भेजा हमें  कोरे कागज के साथ  कि हम लिख सके  हमारी जिंदगी  हमने जैसा समझा  हमने जैसा किया  वैसे ही लिख दी  हमारी जिंदगी  मिटाने चले दुख कई बार मिली न रबर क्योकि   खून से लिखी थी हमारी जिंदगी कही आशू बह रहे थे कही गुब्बारे फूट रहे थे बस दो अक्षरो मे थी हमारी जिंदगी जब हम समझ सके क्या है जिंदगी उसने छीन ली हमारी जिंदगी बस इतनी सी थी हमारी जिंदगी            ✒ अर्पित सचान  follow on facebook See my thoughts to touch thi s To see my other Pages touch this Follow my thoughts on the the yourQuote

कविता : कुछ हसना-गाना शुरू करो

             " कुछ हसना-गाना  शुरू करो"                           कुछ तो सोचा ही होगा, संसार बनाने वाले ने |            वरना सोचो ये दुनिया जीने के लायक नहीं होती ||         तुम रोज सवेरे उठते हो, और रोज रात को सोते हो,           जब भी कोई मिलता है अपना ही रोना रोते हो, ये रोना-धोना बंद करो कुछ हंसना गाना शुरू करो, बेशक मरने को आए हो पर बिना जिए तो नहीं मरो || इन पेड़ों से इन पौधों से कुछ कला सीख लो जीने की,  वरना यह हंसमुख हरियादी इतनी सुखदायक क्यों होती, वरना सोचो यह दुनिया जीने के लायक क्यों होती, कुछ तो सोचा ही होगा संसार बनाने वाले ने || आप जिसे दुख कहते हैं वह क्यों फिरता है मारा मारा, इतना शक्ति भूत होकर भी क्यों कहलाता है बेचारा, वह भी अपनी सुख की खातिर आप तलक आ जाता है, मुझको मेरा दुख दे दो कहकर झोली फैलाता है || हर दुख का भी अपना सुख है जो छिपा आपके भीतर ...