Skip to main content

Posts

Showing posts with the label Mai aur meri parchhai

कविता: मुसाफिर

. "मुसाफिर" जिंदगी एक खोज रही मै मुसाफिर ही रही इस घर से उस घर तक चली नाम को तरसती रही निगाहें मुझ पर ही टिकी मेरे लिए ना घड़ी बनी मै मुसाफिर ही रही आहट मेरी पहचाने न कोई आरज़ू फर्ज ने है कुचली अब बगावत पर हूं अडी रूह भी है सहम रही  मै मुसाफिर ही रही ।                       -   अर्पित सचान                

कविता: मेरी परछाई

. मेरी परछाई आज पूछ ही लिया परछाई से, क्यूं देती हो तुम साथ मेरा  थोड़ा रुक कर बोली, तुझे ना हो कभी अकेलेपन का अहसास कैसे तुझको छोङू अकेला,  जब मै और तुम एक ही है  काया भले ही हो अलग - अलग पर वजूद तो एक ही है, जब दुनिया छोड़ती है तेरा साथ,  तब भी मै होती हूं तेरे साथ जब अपने ही करते है खाक, तब भी मै होती हूं तेरे साथ तू अपने मन की बात कहे ना कहे मुझे सब देती है सुनाई, तेरी हंसी, तेरा दुख, तेरा दर्द सब देता है मुझे दिखाई, तेरे उत्थान से पतन तक, बस मै ही तो होती हूं तेरे साथ  क्योंकि मै हूं तेरी परछाई, कैसे छोड़ दू तेरा साथ ।। -- प्रीती सचान (Teacher)