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Showing posts with the label Mayank Sachan

कविता: सीख लिया हमने

✒️ "सीख लिया हमने" अब संभलना सीख लिया है हमने, गिर कर उठना सीख लिया है हमने, बचपन में चलना सिखाया था मा बाप ने, आज खुद से चलना सीख लिया है हमने, आज खुद संभलकर लोगो को,  संभालना सीख लिया है हमने, अब किसी  सहारे के बिना भी, चलना सीख लिया है हमने, रोते को हसाना सीख लिया है हमने, छोटे पंखों के परिंदो को भी,  उड़ना सिखा दिया है हमने, अब गिर कर संभलना सीख लिया है हमने ।   - प्रीती सचान   

कविता: मेरी परछाई

. मेरी परछाई आज पूछ ही लिया परछाई से, क्यूं देती हो तुम साथ मेरा  थोड़ा रुक कर बोली, तुझे ना हो कभी अकेलेपन का अहसास कैसे तुझको छोङू अकेला,  जब मै और तुम एक ही है  काया भले ही हो अलग - अलग पर वजूद तो एक ही है, जब दुनिया छोड़ती है तेरा साथ,  तब भी मै होती हूं तेरे साथ जब अपने ही करते है खाक, तब भी मै होती हूं तेरे साथ तू अपने मन की बात कहे ना कहे मुझे सब देती है सुनाई, तेरी हंसी, तेरा दुख, तेरा दर्द सब देता है मुझे दिखाई, तेरे उत्थान से पतन तक, बस मै ही तो होती हूं तेरे साथ  क्योंकि मै हूं तेरी परछाई, कैसे छोड़ दू तेरा साथ ।। -- प्रीती सचान (Teacher)

तस्वीर में श्री राम छोटे और मोदी बड़े क्यों??

  जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिन तैसी। कुछ लोगों को इस तस्वीर पर आपत्ति है।  विरोधी मानते हैं कि तस्वीर में श्रीराम से बड़ा मोदी को दिखाया गया। अब सोच की कोई सीमा नहीं है, देखने का अपना अपना दृष्टिकोण है । जैसा दृष्टिकोण होगा सम्भवतः दिखाई भी वैसा ही पड़ेगा। तो दृष्टिकोण की कश्मकश में विरोध करने वाले विरोधियों से मुझे कुछ कहना नहीं है। लेकिन विरोध से पहले इस तस्वीर के तमाम पहलू पर गौर फरमा लिया जाए  पहली बात, हम अपने घर में बाल-गोपाल की पूजा करते हैं। मेरे घर के मंदिर में भी नन्हें बाल गोविंदा विराजमान है। इसका मतलब ये नही हुआ कि घर मे रहने वाले लोग उन से बड़े हो गए। जन्माष्टमी में मक्खन-मिश्री खिलाते हैं। वो बाल-गोपाल कितने बड़े होते हैं? ईश्वर एक शक्ति है,,आराधना है,, तपस्या है,, प्रेम है,, समर्पण है,, भावना है,, सकारात्मकता है,, खुद से खुद को आत्मसात करने का जरिया है। छल, कपटता, घृणा, ईर्ष्या, तो बिल्कुल नही। वहीं श्रीराम के परमभक्त हनुमान ने दिव्य रूप धारण किए थे। अगर आपने रामायण देखी या पढ़ी होगी तो शायद आपको पता भी होगा उसमें बहुत अच्छे से बताया गया ...

कविता : कुछ हसना-गाना शुरू करो

             " कुछ हसना-गाना  शुरू करो"                           कुछ तो सोचा ही होगा, संसार बनाने वाले ने |            वरना सोचो ये दुनिया जीने के लायक नहीं होती ||         तुम रोज सवेरे उठते हो, और रोज रात को सोते हो,           जब भी कोई मिलता है अपना ही रोना रोते हो, ये रोना-धोना बंद करो कुछ हंसना गाना शुरू करो, बेशक मरने को आए हो पर बिना जिए तो नहीं मरो || इन पेड़ों से इन पौधों से कुछ कला सीख लो जीने की,  वरना यह हंसमुख हरियादी इतनी सुखदायक क्यों होती, वरना सोचो यह दुनिया जीने के लायक क्यों होती, कुछ तो सोचा ही होगा संसार बनाने वाले ने || आप जिसे दुख कहते हैं वह क्यों फिरता है मारा मारा, इतना शक्ति भूत होकर भी क्यों कहलाता है बेचारा, वह भी अपनी सुख की खातिर आप तलक आ जाता है, मुझको मेरा दुख दे दो कहकर झोली फैलाता है || हर दुख का भी अपना सुख है जो छिपा आपके भीतर ...