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कविता: हिंदी

'हिंदी'  हिंद देश का मान है हिंदी हिंद का अभिमान है हिंदी हिंदी में होती है बिंदी एक सुहागन की पहचान है बिंदी दुनिया के माथे का सिंगार है हिंदी हिंद देश की पहचान है हिंदी - प्रीती सचान

कविता: हो भला

. ' 'हो भला'' हो भला, जो समझे मिट्टी, मिट्टी में ही तो स्वर्ण छिपे । हो भला, जो कहता कीचड़, कीचड़ में ही तो कमल खिले । तू चल निस्तर कर अथक परिश्रम, तप तप कर तू बन कोयला, न कर परवाह किसी की, कोयला ही तो हीरा बने । लाख बुराइयां होगी तुझमें, एक हुनर भी जरूर होगा, तू तलाश खुद को ही खुद में, एक हुनर  दिखेगा तुझमे । हो भला, जो तुझे समझे मिट्टी मिट्टी से ही तो घड़ा बने, भर खुद में शीतल जल, दूसरों की तो प्यास बुझे । हो भला, जो समझे मिट्टी मिट्टी में ही तो स्वर्ण छिपे । । - अर्पित सचान