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''हो भला''
हो भला, जो समझे मिट्टी,
मिट्टी में ही तो स्वर्ण छिपे ।
हो भला, जो कहता कीचड़,
कीचड़ में ही तो कमल खिले ।
तू चल निस्तर कर अथक परिश्रम,
तप तप कर तू बन कोयला,
न कर परवाह किसी की,
कोयला ही तो हीरा बने ।
लाख बुराइयां होगी तुझमें,
एक हुनर भी जरूर होगा,
तू तलाश खुद को ही खुद में,
एक हुनर दिखेगा तुझमे ।
हो भला, जो तुझे समझे मिट्टी
मिट्टी से ही तो घड़ा बने,
भर खुद में शीतल जल,
दूसरों की तो प्यास बुझे ।
हो भला, जो समझे मिट्टी
मिट्टी में ही तो स्वर्ण छिपे । ।
- अर्पित सचान
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