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कविता : मैं और वो

🖋️
"मैं और वो"

 दिलबर का एहसास अधूरा सा है 
वो पास है फिर भी दूर है,

ये उसकी खुशबू है या कोई इत्तर
होश खो रहा हूं मै इस बेहोशी में भी होश सा है,

चुप हूं मै है वो भी चुप
पर यहां शब्दों का शोर सा है,

बैठा हूं मैं है वो रही हस
ये हसना मुझे सुकून सा है,

देखती है वो मुझे यू आहे भर भर के 
ये मंजर ये फिजा मानो राहत सा है,

कहते है लोग ये इश्क नहीं आसान
पर उसका होना ही मंजिल है, ठहराव है,

हां उसे ही पता हु ख्वाबों ख्यालों में
वो कुछ कहती है उसका सुनना जन्नत सा है ।

          -🖊️ अर्पित सचान




टिप्पणियाँ

Saumya sengar ने कहा…
Nice
Smriti chaurasiya ने कहा…
Love 💞💞

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