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कविता : सफर का हमसफर

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🖋️

"सफर का हमसफर"

वो साथ चले, जब तक रास्ता साफ था,

उसने हाथ थामा जब तक मंजिल पास थी,

यादें बहुत वादे बहुत, बहुत सी बातें थीं,

सफ़र लम्बा पर साथ तुम्हारा छोटा था,

हाथ छूटा तेरा पर साथ हमारा कायम था,

दर्द में आंसू मेरी आंखों से बहा करते थे,

खुशी में लब तेरे हंसा करते थे,

कभी कम ना होने दिया एहसास तुम्हारा,

दिल में चिराग़ जलाए रक्खा है आज भी,

फिर हाथ को तू थमेगा मेरे, जब मंजिल पास होगी,

फिर साथ होगा तेरा उस सफर में,

जिसमें काफ़िला मेरे पीछे होगा,

और अश्क तेरे, तेरे साथ होंगे,

उस दिन तू अश्क बहाएगा मेरे साथ को,

जिस दिन मै अपनी मंज़िल को पाऊंगी,

और तू अकेला ही सफ़र का हमसफर बन जायेगा ।

            -🖊️ प्रीती सचान



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