.
'' फिसल रही जिंदगी ''
हाथ थामे चल रही जिंदगी,
कदम दर कदम ढल रही जिंदगी ।
गजब का है ये सिलसिला,
कश्मकश में जल रही जिंदगी ।
कुछ यादें छोड़ आई अतीत में,
उलझनों में पल रही जिंदगी ।
इसे समझ नही पाया अब तलक,
हर वक्त छल रही जिंदगी ।
साथ चलता है मुसीबतों का काफिला,
न जाने क्यों खल रही जिंदगी ।
खामोश आज ईमान की आरजू,
वो हाथ मल रही जिंदगी ।
मुठ्ठी से रेत की तरह,
अब फिसल रही जिंदगी ।
- अर्पित सचान
Comments