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जब तुम पास होती हो

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 " जब तुम पास होती हो "


कभी बैठ जाया करो पास मेरे,

यूँ दूर से मुस्कुराया न करो,

धड़कनों की रफ़्तार बढ़ जाती है,

जब तुम बेख़याली में जुल्फें उड़ाया करो।


तुम जानती नहीं शायद,

तेरी हर अदा में कशिश है कोई,

जब तुम पलकें झुकाकर देखो,

तो लगे जैसे दुआ में असर है कोई।


मैं चुपचाप तुम्हारी बातों को

कागज़ पर उतार दिया करता हूँ,

तेरे हर लफ्ज़ को

अपने दिल की किताब में सवार दिया करता हूँ।


फिर कभी बरसों बाद

जब तुम न रहो पास मेरे,

वो पन्ने खोलकर

तेरी हँसी को आवाज़ दिया करूँगा।


कहूँगा —

ये महज़ शायरी नहीं है,

ये तो उसकी खामोशी की तर्जुमानी है,

जिसने एक मुस्कान में

पूरी ज़िंदगी बयानी है।


और फिर जब तुम कभी किसी मोड़ पे मिलोगी,

कंधे पे किसी और की ज़िम्मेदारी होगी,

तो कहूँगा बस इतना —

तुम अब भी वैसी ही हो,

पर प्लीज़... यूँ आँखों से बात न किया करो।


क्योंकि देखो...

फिर मैं वही पुरानी गलती कर बैठूंगा,

तेरी हँसी में फिर से जी उठूंगा,

और खामोशी से तेरा नाम

अपनी धड़कनों में लिख दूंगा।


• अर्पित •



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