जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिन तैसी।
कुछ लोगों को इस तस्वीर पर आपत्ति है।
विरोधी मानते हैं कि तस्वीर में श्रीराम से बड़ा मोदी को दिखाया गया।
अब सोच की कोई सीमा नहीं है, देखने का अपना अपना दृष्टिकोण है । जैसा दृष्टिकोण होगा सम्भवतः दिखाई भी वैसा ही पड़ेगा।
तो दृष्टिकोण की कश्मकश में विरोध करने वाले विरोधियों से मुझे कुछ कहना नहीं है। लेकिन विरोध से पहले इस तस्वीर के तमाम पहलू पर गौर फरमा लिया जाए
पहली बात, हम अपने घर में बाल-गोपाल की पूजा करते हैं। मेरे घर के मंदिर में भी नन्हें बाल गोविंदा विराजमान है। इसका मतलब ये नही हुआ कि घर मे रहने वाले लोग उन से बड़े हो गए।
जन्माष्टमी में मक्खन-मिश्री खिलाते हैं। वो बाल-गोपाल कितने बड़े होते हैं?
ईश्वर एक शक्ति है,,आराधना है,, तपस्या है,, प्रेम है,, समर्पण है,, भावना है,, सकारात्मकता है,, खुद से खुद को आत्मसात करने का जरिया है।
छल, कपटता, घृणा, ईर्ष्या, तो बिल्कुल नही।
वहीं श्रीराम के परमभक्त हनुमान ने दिव्य रूप धारण किए थे। अगर आपने रामायण देखी या पढ़ी होगी तो शायद आपको पता भी होगा उसमें बहुत अच्छे से बताया गया है कि
दिव्य विराट रूप धारण कर लेने के बाद अपने कांधे पर राम और लक्ष्मण दोनों को बैठा कर सुग्रीव के पास ले गए थे
इसका मतलब ये बिल्कुल नही की हनुमान के सामने भगवान श्रीराम के कद में छोटे है तो नहीं कि राम छोटे हो गए हनुमान तो श्री राम के परम भक्त थे जो सदा उनकी सेवा को तत्पर्य रहते थे ।
दूसरी बात, अयोध्या के राम मंदिर में रामलला विराजमान होंगे। रामलला यानी बाल प्रभु राम। अब रामलला को बताने के लिए छोटे रूप में तो दिखाना पड़ेगा!
तीसरी बात, चित्र में नरेंद्र मोदी उँगली पकड़कर बाल प्रभु राम को मंदिर की तरफ़ ले जा रहे हैं।
विरोधी चश्मे से देखें तो शायद ग़लत हो सकता है?
पहले की सरकारों ने अयोध्या के राम मंदिर मुद्दे से दूरी रखी या पर्दे के पीछे से खेल किया। ऐसी बुनियाद बना दी कि 2014 के बाद नरेंद्र मोदी को मंदिर के शिलान्यास का सौभाग्य प्राप्त हो गया तो इसमें दोष कैसा? रामलला को प्रचंड बहुमत वाले प्रधानमंत्री ही मंदिर में विराजमान करवा सकते थे और इस अधूरे कार्य को नरेंद्र मोदी ने डंके की चोट पर पूरा कर दिया है।
इसमें छाती पीटने जैसा क्या है ?
दरअसल जिन्हें प्रभु राम से दिक़्क़त है, जिनका आस्तिकता के बजाय नास्तिकता से सरोकार है, उन्हें विरोध के लिए विरोध करना है!
लेकिन विरोध करते करते ये चिंतन मंथन करना भूल गए कि विरोध किन बातों का करना चाहिए।
उन्हें एक कलाकार की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और कलात्मक आज़ादी के अधिक स्वयं के विचारों का घमंड है! वैचारिक ज़िद है इसलिए उन्हें इस चित्र से दिक्कत है।
हाँ और रही आखिरी बात किसी पार्टी की विचारधारा में मुझे बिल्कुल मत आंकिए..
मेरा नजरिया राममय.. राममय..है
तो आईये तुलसीदास द्वारा लिखित कुछ पंक्तियों का वर्णन करते है -
राम सिया राम सिया राम,
जय जय राम,
राम सिया राम सिया राम,
जय जय राम॥
मंगल भवन अमंगल हारी
द्रवहु सुदसरथ अचर बिहारी
राम सिया राम सिया राम जय जय राम – २
हो, होइहै वही जो राम रचि राखा
को करे तरफ़ बढ़ाए साखा
हो, धीरज धरम मित्र अरु नारी
आपद काल परखिये चारी
हो, जेहिके जेहि पर सत्य सनेहू
सो तेहि मिलय न कछु सन्देहू
हो, जाकी रही भावना जैसी
रघु मूरति देखी तिन तैसी
रघुकुल रीत सदा चली आई
प्राण जाए पर वचन न जाई
हरि अनन्त हरि कथा अनन्ता
कहहि सुनहि बहुविधि सब संता
राम सिया राम सिया राम,
जय जय राम,
राम सिया राम सिया राम,
जय जय राम॥
✒️ अर्पित सचान
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