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कविता: मेरी परछाई

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मेरी परछाई

आज पूछ ही लिया परछाई से, क्यूं देती हो तुम साथ मेरा 

थोड़ा रुक कर बोली, तुझे ना हो कभी अकेलेपन का अहसास

कैसे तुझको छोङू अकेला,  जब मै और तुम एक ही है 

काया भले ही हो अलग - अलग पर वजूद तो एक ही है,

जब दुनिया छोड़ती है तेरा साथ,  तब भी मै होती हूं तेरे साथ

जब अपने ही करते है खाक, तब भी मै होती हूं तेरे साथ

तू अपने मन की बात कहे ना कहे मुझे सब देती है सुनाई,

तेरी हंसी, तेरा दुख, तेरा दर्द सब देता है मुझे दिखाई,

तेरे उत्थान से पतन तक, बस मै ही तो होती हूं तेरे साथ 

क्योंकि मै हूं तेरी परछाई, कैसे छोड़ दू तेरा साथ ।।

-- प्रीती सचान (Teacher)



Comments

Himanshi said…
बहुत सुंदर कविता है
Joya khan said…
Very good
Anonymous said…
Nice
Sumit said…
Very good poem
Vikash Shrivastava said…
Wow beautiful poem
Priyanshi Singh said…
Nice
Shruti tiwari said…
Beautiful poem
Shilpi thakur said…
Bahut akshi kavita hai
Kavya mishra said…
Totally poem is good but last four line is too good.

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