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कविता: हो भला

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''हो भला''

हो भला, जो समझे मिट्टी,

मिट्टी में ही तो स्वर्ण छिपे ।

हो भला, जो कहता कीचड़,

कीचड़ में ही तो कमल खिले ।

तू चल निस्तर कर अथक परिश्रम,

तप तप कर तू बन कोयला,

न कर परवाह किसी की,

कोयला ही तो हीरा बने ।

लाख बुराइयां होगी तुझमें,

एक हुनर भी जरूर होगा,

तू तलाश खुद को ही खुद में,

एक हुनर  दिखेगा तुझमे ।

हो भला, जो तुझे समझे मिट्टी

मिट्टी से ही तो घड़ा बने,

भर खुद में शीतल जल,

दूसरों की तो प्यास बुझे ।

हो भला, जो समझे मिट्टी

मिट्टी में ही तो स्वर्ण छिपे । ।

- अर्पित सचान





टिप्पणियाँ

Kavya mishra ने कहा…
Very nice

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