Skip to main content

कोरोना की देश में भयावहता और निष्क्रिय सरकार और लचर स्वास्थ्य व्यवस्था


भारत में आज कोरोना और उसके कारण हुई परेशानियों से देश पूरी तरह परिचित है, जहां एक तरफ लोगों का जीवन अस्त-व्यस्त हो चुका है। वहीं दूसरी ओर सरकार इन परेशानियों को लेकर परेशान है। मैं यह कोरोना की आई दूसरी लहर के लिए किसी हद तक हमारे देश की सरकार को ज़िम्मेदार मानता हूं |

कहीं ना कहीं सरकार से इसको समझने एवं अपनी सत्ता लोलुपता की चाह में गलतियां हुईं हैं जिसका खामियाज़ा आज पूरा देश भुगत रहा है। अगर सरकार ने समय पर कोरोना के खिलाफ अपने सख्त कदम उठाए होते, तो आज हमारा देश इसके प्रकोप से सुरक्षित होता, लेकिन राजनीति और अपना भला देखने वालों ने तो देश के लोगों को ही भुला दिया शायद वे भूल गए कि देश के आम जन मानस से ही सरकार का निर्माण होता है। कोरोना की भयावहता और इन विपरीत परिस्थितियों में, जो हमारे देश की सरकार का सबसे खराब निर्णय रहा वो है अपनी सत्ता की भूख के लिए उत्तरप्रदेश और पश्चिम बंगाल राज्यों में चुनाव कराना ।


शायद ही आपको कोई अवगत कराए मैं खुद उत्तर प्रदेश के कानपुर देहात ज़िले के एक शहर पुखरायां का निवासी हूं और मैंने बखूबी यह अनुभव किया है कि इन चुनावों ने देश में कोरोना की भयावहता को बढ़ावा दिया है। जहां चुनाव से पहले गाँवों में कोरोना के मरीजों की संख्या बिल्कुल ना के बराबर थी, लोग अपना जीवन प्यार से जी रहे थे, लेकिन जब से ये चुनाव हुए हैं उसके बाद गाँवों में कोरोना ने खौफनाक रूप ले लिया है। मेरा अनुमान है लगभग आज सभी घरों में लोग बुखार और कोरोना जैसे लक्षणों से ग्रसित हैं।

गाँवों और छोटे कस्बों के लोगो का ना कोरोना टेस्ट होता है और ना ही उन्हें कोई अच्छी मेडिकल सुविधाएं मिल पाती हैं, जिसके कारण बहुत से लोगों ने अपने परिजनों को खो दिया है और रोज़ खो रहे हैं। क्योंकि, हमारी देश की सरकार का आम जनमानस के स्वास्थ्य की देखरेख में कोई ध्यान ही नहीं है और ना ही कोरोना से मरने वालों की सही आंकड़ों की कोई गणना है।

सरकार द्वारा दी जा रही रिपोर्ट में रोज़ के कोरोना केसों और मृत्यु के आंकड़े पूरी तरह से सही नहीं हैं, क्योंकि उनका तो कोई आंकड़ा ही नहीं है। आज हमारे देश की भ्रष्ट सरकार की गलती से इसका सीधा और सबसे ज़्यादा असर देश की उस जनता पर हुआ है, जो गरीबी रेखा के नीचे आती है और अपना रोज़ का काम करके अपने परिवार का पेट पालती है। देश में लॉकडाउन होने से देश की जनता बेहाल है, अरे मोदी जी आप कहते थे लॉकडाउन को अंतिम विकल्प बनाया जाएगा, लेकिन जैसे ही चुनाव हुए आपकी सरकारों ने लॉकडाउन को लगा दिया जिसका असर देश की गरीब जनता पर सबसे ज़्यादा हो रहा है।
🖊️ अर्पित सचान   


Comments

Popular posts from this blog

बाल दिवस - 14 नवंबर 2024

  आज तारीख है 14/11/2024 , आज है बाल दिवस, बच्चों का दिन, मै भी हमेशा बच्चा  बन कर रहना चाहता हूँ, मुझे इस प्रकार जीवन जीने मे बड़ा ही आनंद आता है वैसे मेरे आनंद का विषय गणित भी है लेकिन मुझे गणित के आनंद के बाद इस तरीके का जीवन जीना पसंद है , इसमे कठिनाइयाँ बहुत होती लेकिन मै खुश हूँ उन्हे सुलझाने में, हाँ क्योंकि मै गणितज्ञ हूँ और मेरा काम है, समस्याओ का समाधान करना, चाहे वो जीवन की हो या गणित की, मेरे पास गणित के logics है , और वह समस्याओ के समाधान मे बहुत हेल्प करते है, मेरा हमेशा से मानना है जीवन को वैसे जियो जैसे आप चाहो न कि कोई दूसरा, खुद के अलावा कोई नहीं जान सकता आपको कैसे खुश रहना है | ''चलो न बच्चों की तरह जीवन जीते है, खुशियों को फिर से सीते है''  बात करते है हम बाल दिवस मानते क्यों है ? बाल दिवस हर साल 14 नवंबर को मनाया जाता है, जो भारत के पहले प्रधानमंत्री, पंडित जवाहरलाल नेहरू का जन्मदिवस है। नेहरू जी बच्चों से बहुत प्रेम करते थे और उन्हें देश का भविष्य मानते थे। इसलिए उनके जन्मदिन को बाल दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया ताकि बच्चों को विशेष मान्य...

कविता : आज फिर से

. आज फिर से..... एक जिंदगी खो दी आंखों के सामने  आज फिर से..... मौत को इतने करीब से देखा सामने आज फिर से..... जिंदगी को हारते देखा आज फिर से..... अपने को हमेशा के लिए दूर होते देखा आज फिर से..... अपने को खो दिया !!!                                         -अर्पित सचान

कविता: मुहोब्बत

. मुहोब्बत उसने पूछा- मुहोब्बत क्या है मैंने कहा 'आग  और दिल? 'चूल्हा है वो मुस्कराई और बोली- तो क्या पकाते हो इस पर? 'रिश्ते और जज्बात' ये चूल्हा जलता कैसे है? 'बातो से मुलाकातों से' उसने शरारती लहजे में पूछा- अच्छा तो मैं क्या हूं? मैंने कहा- "तुम, रोशनी हो और तपिश भी" वो मुस्कराई और शांत हो गई। उसने नहीं पूछा धुआं क्या है? वो अब भी नहीं जानती, मुहोब्बात क्या है । 🖊️ अर्पित सचान