हाल ही में पहलगाम में हुआ आतंकी हमला पूरे देश को झकझोर देने वाली एक अमानवीय और निंदनीय घटना है। यह हमला न केवल निर्दोष लोगों पर था, बल्कि भारत की एकता, अखंडता और सांस्कृतिक धरोहर पर भी सीधा आघात था। ऐसे समय में, जब देश शांति और विकास की ओर बढ़ रहा है, इस तरह की घटनाएँ हमें यह सोचने पर मजबूर करती हैं कि क्या अब भी हम उतने ही सजग और संगठित हैं, जितने होने चाहिए?
हिंदुत्व की सोच, जो केवल धार्मिक विचारधारा नहीं बल्कि एक जीवनशैली, संस्कृति और राष्ट्रभावना की पराकाष्ठा है, ऐसे समय में हमें मार्ग दिखाती है। हिंदुत्व कहता है — "जब धर्म, देश और समाज पर आघात हो, तो केवल सहन करना धर्म नहीं होता, प्रतिकार करना भी कर्तव्य होता है।"
यह विचारधारा बलिदान, सेवा और संगठन की प्रेरणा देती है। स्वामी विवेकानंद से लेकर वीर सावरकर तक, सभी ने हिंदुत्व को केवल पूजा-पद्धति नहीं, बल्कि राष्ट्रहित में कर्म करने की प्रेरणा के रूप में देखा है। ऐसे हमलों पर हिंदुत्व की सोच यही कहती है — "सहनशीलता हमारी कमजोरी नहीं, परंतु अगर कोई हमारी मर्यादा को लांघे, तो उसे उत्तर देना भी धर्म है।"
देश को अब ऐसे निर्णायक नेतृत्व और नीति की आवश्यकता है, जो आतंकवाद के खिलाफ शून्य सहिष्णुता की नीति अपनाए। हमारी सुरक्षा एजेंसियों को पूर्ण समर्थन और हमारे सैनिकों को सम्मान मिलना चाहिए।
हिंदुत्व का स्पष्ट संदेश है — यह देश किसी भी कीमत पर झुकने वाला नहीं है। न आतंक से, न विचारधारा से।
संवेदना के साथ हमें संकल्प की आवश्यकता है। शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि हम एकजुट रहें, सजग रहें और भारत को एक शक्तिशाली, आत्मनिर्भर राष्ट्र बनाएं — जहाँ हर नागरिक गर्व से कह सके, "मैं भारतीय हूँ, और यह मेरा भारत है!"
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