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कविता : कुछ हसना-गाना शुरू करो

            "कुछ हसना-गाना शुरू करो"
             
            कुछ तो सोचा ही होगा, संसार बनाने वाले ने | 
          वरना सोचो ये दुनिया जीने के लायक नहीं होती ||

        तुम रोज सवेरे उठते हो, और रोज रात को सोते हो,
          जब भी कोई मिलता है अपना ही रोना रोते हो,
ये रोना-धोना बंद करो कुछ हंसना गाना शुरू करो,
बेशक मरने को आए हो पर बिना जिए तो नहीं मरो ||

इन पेड़ों से इन पौधों से कुछ कला सीख लो जीने की,
 वरना यह हंसमुख हरियादी इतनी सुखदायक क्यों होती,
वरना सोचो यह दुनिया जीने के लायक क्यों होती,
कुछ तो सोचा ही होगा संसार बनाने वाले ने ||

आप जिसे दुख कहते हैं वह क्यों फिरता है मारा मारा,
इतना शक्ति भूत होकर भी क्यों कहलाता है बेचारा,
वह भी अपनी सुख की खातिर आप तलक आ जाता है,
मुझको मेरा दुख दे दो कहकर झोली फैलाता है ||

हर दुख का भी अपना सुख है जो छिपा आपके भीतर है,
यह छम्मक छैया सुख-दुख की अपनी सुर गायक क्यों होती,
वरना सोचो यह दुनिया जीने के लायक क्यों होती,
कुछ तो सोचा ही होगा संसार बनाने वाले ने ||

इस दुनिया में इस जीवन को जी लेना एक तपस्या है,
पता नहीं किसने समझाया जीवन एक समस्या है,
संसार बनाने वाला अपना शत्रु नहीं है साथी है,
जब जब भी तुम हंसते हो उसकी बांहें खिल जाती हैं||

आंसू को उसने उम्र नहीं दी यह भी एक करिश्मा है,
वरना खुशियों की उम्र भला इतनी उन्ननायक नायक क्यों होती
वरना सोचो यह दुनिया जीने के लायक नहीं  होती,
कुछ तो सोचा ही होगा संसार बनाने वाले ने ||

                            अर्पित सचान



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