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पहलगाम हमला: अब और नहीं! हिंदुत्व की पुकार

 पहलगाम में हुआ आतंकी हमला कोई पहली बार नहीं है। हर कुछ महीने में हम ऐसी ख़बरें सुनते हैं — काफिला हमला हुआ, तीर्थ यात्री निशाना बने, सैनिक शहीद हो गए। क्या हम इतने ही लाचार हैं? क्या ये देश सिर्फ मोमबत्तियाँ जलाने और शोक जताने तक सिमट गया है? लेकिन अब बहुत हो चुका। हिंदुत्व की सोच इस कायरता के सामने झुकने वाली नहीं है। यह विचारधारा कहती है — अगर कोई तुम्हारे घर में घुसकर तुम्हारी मां को गाली दे, तो क्या तुम सिर्फ शांति पाठ करोगे? नहीं! तुम उठोगे, लड़ेगे और उसे बाहर फेंकोगे। यही है हिंदुत्व — राष्ट्र रक्षा का संकल्प। यह हमला सिर्फ उन यात्रियों पर नहीं हुआ, यह हमला भारत की आत्मा पर हुआ है — उस आत्मा पर, जो सनातन है, जो काशी से लेकर कन्याकुमारी तक गूंजती है। क्या हमें अब भी सेक्युलरिज़्म के नशे में ही रहना है? क्या हर बार यह कह देना काफी है कि “आतंक का कोई धर्म नहीं होता”? लेकिन हम सब जानते हैं कि आतंक की जड़ें कहाँ हैं, और उसे संरक्षण कौन देता है। हिंदुत्व यह नहीं सिखाता कि आंख मूंद लो, यह सिखाता है — “सहनशीलता तब तक धर्म है, जब तक वह कायरता न बन जाए। लेकिन जब असुर धर्म, संस्कृति और...

पहलगाम हमला और हिंदुत्व की सोच

हाल ही में पहलगाम में हुआ आतंकी हमला पूरे देश को झकझोर देने वाली एक अमानवीय और निंदनीय घटना है। यह हमला न केवल निर्दोष लोगों पर था, बल्कि भारत की एकता, अखंडता और सांस्कृतिक धरोहर पर भी सीधा आघात था। ऐसे समय में, जब देश शांति और विकास की ओर बढ़ रहा है, इस तरह की घटनाएँ हमें यह सोचने पर मजबूर करती हैं कि क्या अब भी हम उतने ही सजग और संगठित हैं, जितने होने चाहिए? हिंदुत्व की सोच, जो केवल धार्मिक विचारधारा नहीं बल्कि एक जीवनशैली, संस्कृति और राष्ट्रभावना की पराकाष्ठा है, ऐसे समय में हमें मार्ग दिखाती है। हिंदुत्व कहता है — "जब धर्म, देश और समाज पर आघात हो, तो केवल सहन करना धर्म नहीं होता, प्रतिकार करना भी कर्तव्य होता है।" यह विचारधारा बलिदान, सेवा और संगठन की प्रेरणा देती है। स्वामी विवेकानंद से लेकर वीर सावरकर तक, सभी ने हिंदुत्व को केवल पूजा-पद्धति नहीं, बल्कि राष्ट्रहित में कर्म करने की प्रेरणा के रूप में देखा है। ऐसे हमलों पर हिंदुत्व की सोच यही कहती है — "सहनशीलता हमारी कमजोरी नहीं, परंतु अगर कोई हमारी मर्यादा को लांघे, तो उसे उत्तर देना भी धर्म है।" देश को अब ऐसे...

मेहनत रंग लाएगी

. "मेहनत रंग लाएगी" कल है परीक्षा, घबराना क्या, जो सीखा है, वो भूलना क्या? मेहनत की जो ज्योत जलाई, अब उसकी रोशनी काम आयेगी, रात के अंधेरे से डरना नहीं, सवेरा बस आने को है, हर सवाल का हल छिपा है तुझमें,  बस अब खुद पर भरोसा करने को है, जो पढ़ा, जो समझा, सब याद रहेगा, तेरी मेहनत का हर रंग आबाद रहेगा, रातों की जगी जो मेहनत है तेरी, वो बस कल तुझे जीत दिलायेगी पूरी, बस विश्वास रख, मन को शान्त रख,  सफलता तेरे कदम चूमेगी ये याद रख । -  अर्पित सचान  "परीक्षा केवल जीवन का एक हिस्सा है, जिंदगी नहीं" अपना सर्वश्रेष्ठ देना जरूरी है, लेकिन डरना नहीं है मेहनत कभी जाया नहीं जाती, उसका असर जरूर दिखेगा अपने ऊपर भरोसा रखो, एक बात हमेशा याद रखो अगर मै नहीं कर पाया तो कोई नहीं कर पाएगा, मै श्रेष्ठ हूं ।

बाल दिवस - 14 नवंबर 2024

  आज तारीख है 14/11/2024 , आज है बाल दिवस, बच्चों का दिन, मै भी हमेशा बच्चा  बन कर रहना चाहता हूँ, मुझे इस प्रकार जीवन जीने मे बड़ा ही आनंद आता है वैसे मेरे आनंद का विषय गणित भी है लेकिन मुझे गणित के आनंद के बाद इस तरीके का जीवन जीना पसंद है , इसमे कठिनाइयाँ बहुत होती लेकिन मै खुश हूँ उन्हे सुलझाने में, हाँ क्योंकि मै गणितज्ञ हूँ और मेरा काम है, समस्याओ का समाधान करना, चाहे वो जीवन की हो या गणित की, मेरे पास गणित के logics है , और वह समस्याओ के समाधान मे बहुत हेल्प करते है, मेरा हमेशा से मानना है जीवन को वैसे जियो जैसे आप चाहो न कि कोई दूसरा, खुद के अलावा कोई नहीं जान सकता आपको कैसे खुश रहना है | ''चलो न बच्चों की तरह जीवन जीते है, खुशियों को फिर से सीते है''  बात करते है हम बाल दिवस मानते क्यों है ? बाल दिवस हर साल 14 नवंबर को मनाया जाता है, जो भारत के पहले प्रधानमंत्री, पंडित जवाहरलाल नेहरू का जन्मदिवस है। नेहरू जी बच्चों से बहुत प्रेम करते थे और उन्हें देश का भविष्य मानते थे। इसलिए उनके जन्मदिन को बाल दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया ताकि बच्चों को विशेष मान्य...

ए जिंदगी

. ए जिदंगी, आ जीना सीखा दू, ए जिंदगी, आ लोगो से बात करना सीखा दू, ए जिंदगी, आ तुझे लोगो को हंसाना सीखा दू, ए जिंदगी, आ तुझे बच्चो से खेलना दिखा दू, ए जिंदगी, आ तुझे लोगो के जीना का तरीका सीखा दू, ए जिंदगी,  तू मत खेला कर लोगो के साथ, आ तुझे उसने मुहोब्बत करा दू ।                       - अर्पित सचान

अमिताभ बच्चन की कलम से।

. गिरना भी अच्छा है, औकात का पता चलता है...... बढ़ते हैं जब हाथ उठाने को.......  अपनों का पता चलता है !  जिन्हें गुस्सा आता है वो लोग सच्चे होते हैं, मैंने झूठों को अक्सर  मुस्कुराते हुए देखा.....!! सीख रहा हूं  मैं भी इंसानों को पढने का हुनर,  सुना है चेहरे पे किताबों से ज्यादा लिखा होता है | ~ अमिताभ बच्चन 

कविता : फिसल रही जिंदगी

. '' फिसल रही जिंदगी '' हाथ थामे चल रही जिंदगी, कदम दर कदम ढल रही जिंदगी । गजब का है ये सिलसिला, कश्मकश में जल रही जिंदगी । कुछ यादें छोड़ आई अतीत में, उलझनों में पल रही जिंदगी । इसे समझ नही पाया अब तलक, हर वक्त छल रही जिंदगी । साथ चलता है मुसीबतों का काफिला, न जाने क्यों खल रही जिंदगी । खामोश आज ईमान की आरजू, वो हाथ मल रही जिंदगी । मुठ्ठी से रेत की तरह, अब फिसल रही जिंदगी ।                                                       - अर्पित सचान