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इंतजार एक बरस का

 . " इंतजार एक बरस का " अब एक साल बाद मिलने का वादा किया है, जैसे हर सांस को एक नया इरादा दिया है। वो लम्हा जब अलविदा कहा था उसने, हर शब्द में जैसे सागर बहा था उसने। आंखों में उम्मीदें, दिल में हलचल थी, उसकी मुस्कान में भी थोड़ी सी हलचल थी। "एक साल बस..." उसने धीरे से कहा था, जैसे तसल्ली का कोई मरहम लगा था। हर दिन अब उस दिन का इंतज़ार है, जिस दिन फिर से वो सामने यार है। कैलेंडर की तारीख़ें अब मायने रखती हैं, हर गुज़री सुबह उससे करीब ले चलती हैं। कुछ खत लिखे हैं, भेजे नहीं जाते, बस दिल में रखे हैं, पढ़े नहीं जाते। हर मौसम में उसकी खुशबू ढूंढी है, हर भीड़ में उसकी आहट सूनी है। कभी चाँद से बात कर ली रातों में, कभी नाम लिखा रेत की बातों में। वो एक साल, अब उम्र सा लगने लगा है, हर दिन जैसे थोड़ा कम होने लगा है। बस एक वादा है, जो धड़कनों में बसा है, वो मिलेगी फिर, यही तो हर दुआ में लिखा है। • अर्पित •
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बस की एक सीट पर इश्क़ बैठा था

.  "बस की एक सीट पर इश्क़ बैठा था" सफर में था, थकान सी थी दिल भी कुछ अनजान सी था, रात थी — चाँद कहीं बादलों में खोया हुआ, और मेरे दिल में कोई ख्वाब गूंज रहा था। बस आई, और मेरी बगल की सीट पर वो लड़की बैठी — जैसे कोई दुआ क़बूल हो गई थी। गोरी सी, सादगी में डूबी हुई, बालों को ज़रा सा कानों के पीछे कर के बैठी थी, फोन उसके हाथ में था, पर निगाहें कभी-कभी खिड़की से बाहर भटकती थीं। रात की खामोशी में उसकी सांसों की सदा थी, हर पल ऐसा लगा जैसे कोई दुआ साथ चला था। बस की धीमी रफ़्तार और नीली सी रौशनी, जैसे इश्क़ ने चुपके से चादर ओढ़ ली थी। उसके आंखों से टकराती रोशनी, मेरे दिल में कोई तरंग सी छोड़ रही थी। वो कुछ नहीं बोल रही थी — मगर सब कह रही थी, उसके पास बैठकर लगा, जैसे वक्त भी ठहर गया। हर झपकती स्ट्रीट लाइट के साथ एक नई कहानी दिल में लिखी जा रही थी हमारे बीच कोई बात नहीं हुई, बस धड़कनों की आवाज़ें तेज़ थीं, उसके उंगलियों से टकरा कर मेरी उँगलियाँ कुछ पल ठहर गई थीं। वो मुस्कुराई नहीं, जैसे कोई राज़ कह गई, बस के झटकों में जब उसका हाथ मेरे हाथ से टकराया, मेरे वजूद ने पहली बार किसी को खुद से...

जब तुम पास होती हो

.  " जब तुम पास होती हो " कभी बैठ जाया करो पास मेरे, यूँ दूर से मुस्कुराया न करो, धड़कनों की रफ़्तार बढ़ जाती है, जब तुम बेख़याली में जुल्फें उड़ाया करो। तुम जानती नहीं शायद, तेरी हर अदा में कशिश है कोई, जब तुम पलकें झुकाकर देखो, तो लगे जैसे दुआ में असर है कोई। मैं चुपचाप तुम्हारी बातों को कागज़ पर उतार दिया करता हूँ, तेरे हर लफ्ज़ को अपने दिल की किताब में सवार दिया करता हूँ। फिर कभी बरसों बाद जब तुम न रहो पास मेरे, वो पन्ने खोलकर तेरी हँसी को आवाज़ दिया करूँगा। कहूँगा — ये महज़ शायरी नहीं है, ये तो उसकी खामोशी की तर्जुमानी है, जिसने एक मुस्कान में पूरी ज़िंदगी बयानी है। और फिर जब तुम कभी किसी मोड़ पे मिलोगी, कंधे पे किसी और की ज़िम्मेदारी होगी, तो कहूँगा बस इतना — तुम अब भी वैसी ही हो, पर प्लीज़... यूँ आँखों से बात न किया करो। क्योंकि देखो... फिर मैं वही पुरानी गलती कर बैठूंगा, तेरी हँसी में फिर से जी उठूंगा, और खामोशी से तेरा नाम अपनी धड़कनों में लिख दूंगा। • अर्पित •

पहलगाम हमला: अब और नहीं! हिंदुत्व की पुकार

 पहलगाम में हुआ आतंकी हमला कोई पहली बार नहीं है। हर कुछ महीने में हम ऐसी ख़बरें सुनते हैं — काफिला हमला हुआ, तीर्थ यात्री निशाना बने, सैनिक शहीद हो गए। क्या हम इतने ही लाचार हैं? क्या ये देश सिर्फ मोमबत्तियाँ जलाने और शोक जताने तक सिमट गया है? लेकिन अब बहुत हो चुका। हिंदुत्व की सोच इस कायरता के सामने झुकने वाली नहीं है। यह विचारधारा कहती है — अगर कोई तुम्हारे घर में घुसकर तुम्हारी मां को गाली दे, तो क्या तुम सिर्फ शांति पाठ करोगे? नहीं! तुम उठोगे, लड़ेगे और उसे बाहर फेंकोगे। यही है हिंदुत्व — राष्ट्र रक्षा का संकल्प। यह हमला सिर्फ उन यात्रियों पर नहीं हुआ, यह हमला भारत की आत्मा पर हुआ है — उस आत्मा पर, जो सनातन है, जो काशी से लेकर कन्याकुमारी तक गूंजती है। क्या हमें अब भी सेक्युलरिज़्म के नशे में ही रहना है? क्या हर बार यह कह देना काफी है कि “आतंक का कोई धर्म नहीं होता”? लेकिन हम सब जानते हैं कि आतंक की जड़ें कहाँ हैं, और उसे संरक्षण कौन देता है। हिंदुत्व यह नहीं सिखाता कि आंख मूंद लो, यह सिखाता है — “सहनशीलता तब तक धर्म है, जब तक वह कायरता न बन जाए। लेकिन जब असुर धर्म, संस्कृति और...

पहलगाम हमला और हिंदुत्व की सोच

हाल ही में पहलगाम में हुआ आतंकी हमला पूरे देश को झकझोर देने वाली एक अमानवीय और निंदनीय घटना है। यह हमला न केवल निर्दोष लोगों पर था, बल्कि भारत की एकता, अखंडता और सांस्कृतिक धरोहर पर भी सीधा आघात था। ऐसे समय में, जब देश शांति और विकास की ओर बढ़ रहा है, इस तरह की घटनाएँ हमें यह सोचने पर मजबूर करती हैं कि क्या अब भी हम उतने ही सजग और संगठित हैं, जितने होने चाहिए? हिंदुत्व की सोच, जो केवल धार्मिक विचारधारा नहीं बल्कि एक जीवनशैली, संस्कृति और राष्ट्रभावना की पराकाष्ठा है, ऐसे समय में हमें मार्ग दिखाती है। हिंदुत्व कहता है — "जब धर्म, देश और समाज पर आघात हो, तो केवल सहन करना धर्म नहीं होता, प्रतिकार करना भी कर्तव्य होता है।" यह विचारधारा बलिदान, सेवा और संगठन की प्रेरणा देती है। स्वामी विवेकानंद से लेकर वीर सावरकर तक, सभी ने हिंदुत्व को केवल पूजा-पद्धति नहीं, बल्कि राष्ट्रहित में कर्म करने की प्रेरणा के रूप में देखा है। ऐसे हमलों पर हिंदुत्व की सोच यही कहती है — "सहनशीलता हमारी कमजोरी नहीं, परंतु अगर कोई हमारी मर्यादा को लांघे, तो उसे उत्तर देना भी धर्म है।" देश को अब ऐसे...

मेहनत रंग लाएगी

. "मेहनत रंग लाएगी" कल है परीक्षा, घबराना क्या, जो सीखा है, वो भूलना क्या? मेहनत की जो ज्योत जलाई, अब उसकी रोशनी काम आयेगी, रात के अंधेरे से डरना नहीं, सवेरा बस आने को है, हर सवाल का हल छिपा है तुझमें,  बस अब खुद पर भरोसा करने को है, जो पढ़ा, जो समझा, सब याद रहेगा, तेरी मेहनत का हर रंग आबाद रहेगा, रातों की जगी जो मेहनत है तेरी, वो बस कल तुझे जीत दिलायेगी पूरी, बस विश्वास रख, मन को शान्त रख,  सफलता तेरे कदम चूमेगी ये याद रख । -  अर्पित सचान  "परीक्षा केवल जीवन का एक हिस्सा है, जिंदगी नहीं" अपना सर्वश्रेष्ठ देना जरूरी है, लेकिन डरना नहीं है मेहनत कभी जाया नहीं जाती, उसका असर जरूर दिखेगा अपने ऊपर भरोसा रखो, एक बात हमेशा याद रखो अगर मै नहीं कर पाया तो कोई नहीं कर पाएगा, मै श्रेष्ठ हूं ।

बाल दिवस - 14 नवंबर 2024

  आज तारीख है 14/11/2024 , आज है बाल दिवस, बच्चों का दिन, मै भी हमेशा बच्चा  बन कर रहना चाहता हूँ, मुझे इस प्रकार जीवन जीने मे बड़ा ही आनंद आता है वैसे मेरे आनंद का विषय गणित भी है लेकिन मुझे गणित के आनंद के बाद इस तरीके का जीवन जीना पसंद है , इसमे कठिनाइयाँ बहुत होती लेकिन मै खुश हूँ उन्हे सुलझाने में, हाँ क्योंकि मै गणितज्ञ हूँ और मेरा काम है, समस्याओ का समाधान करना, चाहे वो जीवन की हो या गणित की, मेरे पास गणित के logics है , और वह समस्याओ के समाधान मे बहुत हेल्प करते है, मेरा हमेशा से मानना है जीवन को वैसे जियो जैसे आप चाहो न कि कोई दूसरा, खुद के अलावा कोई नहीं जान सकता आपको कैसे खुश रहना है | ''चलो न बच्चों की तरह जीवन जीते है, खुशियों को फिर से सीते है''  बात करते है हम बाल दिवस मानते क्यों है ? बाल दिवस हर साल 14 नवंबर को मनाया जाता है, जो भारत के पहले प्रधानमंत्री, पंडित जवाहरलाल नेहरू का जन्मदिवस है। नेहरू जी बच्चों से बहुत प्रेम करते थे और उन्हें देश का भविष्य मानते थे। इसलिए उनके जन्मदिन को बाल दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया ताकि बच्चों को विशेष मान्य...