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कविता: किताबे इश्क़

"किताबे इश्क़" आज लिखती हूं दस्ताने किताबे इश्क़ की नहीं इनसे पाक मोहब्बत किसी की सच्चा और नेक इश्क़ है इनका साथ देना काम है इनका किताबों का इश्क़ कभी बेवफाई नहीं करता हर मुश्कल में हाथ है थामे रखता छोड़ो इंसानी इश्क़ का फलसफा वक्त ज़रूरत काम आयेगा इश्क़ किताबों का।। - प्रीती सचान

कविता: अफसोस नहीं

" अफसोस नहीं " ऐ मेरी मोहब्बत मै तेरे दूर जाने का अफसोस नहीं करती   तू अकेली नहीं गई  तेरे साथ मेरी रूह भी गई है ज़िन्दगी की उलझनों से कभी फुरसत मिले तो बीते हुए पलों में उनको भी तलाश लेना  जिन्होंने तुमसे नहीं तुम्हारी रूह से मोहब्बत की । कब्र में तो जिस्म दफ्फन होते हैं रूह- ए- मोहब्बत तो आज़ाद होती है कभी बागो में खिले फूलों पर मंडराती तितली की तरह कभी हवाओं में घुली सोंधी खुशबू की तरह नदियों में उफनाते जल की तरह सूरज की सुनहरी धूप की तरह जिसे महसूस किया जा सकता है,पाया नहीं जीवन में कभी अकेलापन लगे तो खुद को कभी अकेला मत समझना जब मेरी रूह जिस्म से आज़ाद हो उस वक्त भी तुम्हारे साथ होगी इसलिए मै तेरे दूर जाने का अफसोस नहीं करती।। -  प्रीती सचान

Mathematics - Why & why?

Why we study mathematics ? In many disciplines, the history of the twentieth century tells of the introduction of more and more mathematical and statistical techniques. Mathematics has been established as a universal ingredient in the understanding of the world, and is the language used in conveying this understanding. Now, in the twenty-first century, higher mathematics and statistics are not just tools for physical scientists and engineers, but also of crucial importance in business, economics, social sciences, medicine, and many other fields. Many mathematicians delight in the aesthetic appeal of their subject; however, it is ultimately the application of mathematics that makes it a critical element in modern civilization.  Statistics is a subfield of the mathematical sciences. Its applications to new technologies and big data are so numerous that it warrants its own major; however, to study statistics is essentially to study mathematics. When we refer to "mathematics...

कविता: सीख लिया हमने

✒️ "सीख लिया हमने" अब संभलना सीख लिया है हमने, गिर कर उठना सीख लिया है हमने, बचपन में चलना सिखाया था मा बाप ने, आज खुद से चलना सीख लिया है हमने, आज खुद संभलकर लोगो को,  संभालना सीख लिया है हमने, अब किसी  सहारे के बिना भी, चलना सीख लिया है हमने, रोते को हसाना सीख लिया है हमने, छोटे पंखों के परिंदो को भी,  उड़ना सिखा दिया है हमने, अब गिर कर संभलना सीख लिया है हमने ।   - प्रीती सचान   

कविता: मुसाफिर

. "मुसाफिर" जिंदगी एक खोज रही मै मुसाफिर ही रही इस घर से उस घर तक चली नाम को तरसती रही निगाहें मुझ पर ही टिकी मेरे लिए ना घड़ी बनी मै मुसाफिर ही रही आहट मेरी पहचाने न कोई आरज़ू फर्ज ने है कुचली अब बगावत पर हूं अडी रूह भी है सहम रही  मै मुसाफिर ही रही ।                       -   अर्पित सचान                

कविता: मेरी परछाई

. मेरी परछाई आज पूछ ही लिया परछाई से, क्यूं देती हो तुम साथ मेरा  थोड़ा रुक कर बोली, तुझे ना हो कभी अकेलेपन का अहसास कैसे तुझको छोङू अकेला,  जब मै और तुम एक ही है  काया भले ही हो अलग - अलग पर वजूद तो एक ही है, जब दुनिया छोड़ती है तेरा साथ,  तब भी मै होती हूं तेरे साथ जब अपने ही करते है खाक, तब भी मै होती हूं तेरे साथ तू अपने मन की बात कहे ना कहे मुझे सब देती है सुनाई, तेरी हंसी, तेरा दुख, तेरा दर्द सब देता है मुझे दिखाई, तेरे उत्थान से पतन तक, बस मै ही तो होती हूं तेरे साथ  क्योंकि मै हूं तेरी परछाई, कैसे छोड़ दू तेरा साथ ।। -- प्रीती सचान (Teacher)

तस्वीर में श्री राम छोटे और मोदी बड़े क्यों??

  जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिन तैसी। कुछ लोगों को इस तस्वीर पर आपत्ति है।  विरोधी मानते हैं कि तस्वीर में श्रीराम से बड़ा मोदी को दिखाया गया। अब सोच की कोई सीमा नहीं है, देखने का अपना अपना दृष्टिकोण है । जैसा दृष्टिकोण होगा सम्भवतः दिखाई भी वैसा ही पड़ेगा। तो दृष्टिकोण की कश्मकश में विरोध करने वाले विरोधियों से मुझे कुछ कहना नहीं है। लेकिन विरोध से पहले इस तस्वीर के तमाम पहलू पर गौर फरमा लिया जाए  पहली बात, हम अपने घर में बाल-गोपाल की पूजा करते हैं। मेरे घर के मंदिर में भी नन्हें बाल गोविंदा विराजमान है। इसका मतलब ये नही हुआ कि घर मे रहने वाले लोग उन से बड़े हो गए। जन्माष्टमी में मक्खन-मिश्री खिलाते हैं। वो बाल-गोपाल कितने बड़े होते हैं? ईश्वर एक शक्ति है,,आराधना है,, तपस्या है,, प्रेम है,, समर्पण है,, भावना है,, सकारात्मकता है,, खुद से खुद को आत्मसात करने का जरिया है। छल, कपटता, घृणा, ईर्ष्या, तो बिल्कुल नही। वहीं श्रीराम के परमभक्त हनुमान ने दिव्य रूप धारण किए थे। अगर आपने रामायण देखी या पढ़ी होगी तो शायद आपको पता भी होगा उसमें बहुत अच्छे से बताया गया ...